- मैं कोई शायर या कवि नहीं हाँ बस अभी डिस्चार्ज मोबाइल और लम्बे रस्ते ने और कोई रास्ता ही न छोड़ा |इन सब ने मजबूर नहीं किया लिखने को वो तो बस इस सफर में एक हसीन छाप छोड़ने का जी चाह रहा हैहाँ इसमें को भी कोई दो मत नहीं शायद ये एक सयोंग है जहाँ ये सब मेरी इच्छाओ के पूरक बनते दिख रहे है | स्ट्रीट लाइट की हलकी रौशनी और हिचकोले खाती टैक्सी में लिखना वाकई मुश्किल है,पर पता नहीं क्यों ये मौसम भी आज साथ दे रहा है |बेकार लगता है जब ये शीशे की दीवार आ जाती है मेरे और इन ठंडी खूबसूरत हवाओं के बीच में ये ऐसी का ढकोसला भी न हवा की छुअन से दूर कर कर रहा है मुझको हवा का झोंका जब चेहरे को छूता हुआ निकलता है तो लगता है मानो महबूबा का दुपट्टा चेहरे को छूता निकल गया हों | पर ये मुहब्बत्त के दुश्मन उबेर और ओला ने भी न हमें AC के जाल में कैद करने का उपाय ढूंढ लिया है क्या जरुरत है इस दीवार की जब बाहर जहान इतना खूबसरत और मौसम बेईमान हो रहा हैआखिर क्यों कोई बंद रहे इस कैद में जब बाहर बारिश की वो हलकी बुँदे पुकार रही हो मिलने कोये कोई सवाल नही है ये तो मन में उठती उन उम्मीदों का आइना है,जिसमे हम इस जिंदगी से कुछ हसीं के पल तलाश रहे है ऐसा नहीं है की मैं उनलोगो से सवाल कर रहा हूँ जो इस आराम के आदी हो या किसी को झुलसती गर्मी में तपने की सलाह दे रहा हूँमैं तो बस इसी भावना उजागर करने की कोशिश कर रहा हूँ कही एक दिन ऐसा वक़्त ना आये ज़िन्दगी में किहम इन ढकोसलों के बीच असली ज़िंदगी का लुत्फ़ उठाना भूल जाए,हम भूल जाए कि इस शीशे कि दिवार के उस पार भी एक दुनिया है और वो दुनिया-२ इतनी हसीन और खूबसूरत है कि जो उसमे जाता है बस कही खो सा जाता है,बस उसका हो जाता है मैं आपको उस शीशे को तोड़ने नहीं कह रहा हूँ मई तो बस कह रहा हूँ कि ये मन के भीतर जो शीशे कि दीवार है उसको तोडिये उसको तोडिये और जीना सीखिये ताकि कल जब थोड़ा वक़्त बचा हो अपने हिस्से में तब आपका मन आपसे कोई सवाल ना पूछे मैंने सोच लिया मैंने सोच लिया और गिरा दिया है मैने शीशा आज,तोड़ दी है दीवार ,बस तोड़ दी है दीवार |
Sunday 23 August 2015
आज़ादी इन दीवारों से
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ReplyDeleteJanaab thode font bde krdo.. padhne me aasani hogi :P
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